कबाड़ी वाला हर बार मांगे, साहब लोहा नहीं है क्या
1:05 PM Posted In कबाड़ 3 Comments »पहला लेख लिखने के बाद कुछ और लिखने की तड़प और ज्यादा हो गई है।
किस्सा याद आता है,
सन २००१ की बात है, हमने अपने मकान में कुछ तोड़ फोड़ करवा कर रंगाई पुताई करवाई, अब हर रोज़ कुछ कबाड़ निकलता था तो वहाँ से गुज़रने वाले कबाड़ी को कह दिया - यार हर दूसरे दिन हमारे यहाँ से उठा लेना।
जनाब खुशी खुशी हर दूसरे दिन आ कर ले जाते थे जो भी निकलता था।
यह सिलसिला दो महीने तक चला। चलो भई हमारा काम ठीक निपट गया।
आखिरी दिन हमले उन का शुक्रिया किया और कहा अब महीने दो में पूछ लिया करना।
यह सब कई महीनो चला, कबाड़ बिकता रहा, महीने दर महीने
मगर हर बार जाते जाते पूछ बैठता - साहब लोहा नहीं है
कई महीने हो गए एक दिन तिलमिला के कहा, यार यह लोहा नहीं है की रट बंद करो या मेरा पीछा छोड़ो।
बाजू में खड़े खुराना जी बोले (शायद मुझे कभी गुस्से में नहीं देखा था उन्होंने) लगता है आपने इसे कई किलो लोहा बेचा था। मोटी कमाई हुई होगी उस से।
तब याद आया एक कमरा तोड़ने पर जो लोहा निकला था वो बेचा था,
खैर फिर नहीं पूछा उसने।
3 टिप्पणियाँ:
हिन्दी चिट्ठो की दुनिया में आप्का स्वागत है।
स्वागत है आपका
लोहा थोड़ा-थोड़ा न बेंचे बहुत महँगा है।
bahut achchha likhte hai likhte rahiye
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