यार बड़ा सा फोड़ दो एक बार

7:51 AM Posted In 1 Comment »


बहुत हुआ अब,

क्या यह छोटे छोटे फोड़ते हो,

क्या यह दो चार मारते हो,

अगर डराना है दुनिया को,

यार बड़ा सा फोड़ दो एक बार।

बस एक बार और सब खत्म।

मेरा साया

6:22 AM Posted In 3 Comments »

आज कल में अपने साये में खुद को तलाशता हूँ,

साया मेरा मुझ से तेज़ है शायद,

हर समय मुझ से कुछ कदम आगे है वो,

वो शायद मुझ में मुझे ही तलाशता है,

ये भागती दुनिया खुद को खुद से जुदा कर देती है,

आज कल में अपने साये में खुद को तलाशता हूँ।

छत का वो कोना याद आता है

5:47 AM Posted In 0 Comments »

बचपन के खेल का वो कोना,

लड़खपन के मखौल का वो कोना,

जवानी की शैतानी का वो कोना,

किसी के इंतज़ार में काटा वो कोना,

थक कर चूर आराम लेने का वो कोना,

छत के कोने में अब अकेला कोना याद आता है।

यह दिल मांगे मोर आई-पी-एल आ हा

10:46 AM Posted In 1 Comment »

आई पी एल आने से पहले तो लोग सोचते थे क्रिक्ट का स्तर गिर जाएगा, यह होगा वोह होगा, मगर आई पी एल ने क्रिकिट प्रेमीयों को खुल कर खुश किया।

अब समय बीत गया है, लोग आई पी एल को भूलने लगे हैं। मगर जब भी याद आती है, दिल कहता है काश और देखनो को मिल जाता।

 

और दिल कहता है,

यह दिल मांगे मोर आई-पी-एल आ हा

कबाड़ी वाला हर बार मांगे, साहब लोहा नहीं है क्या

1:05 PM Posted In 3 Comments »

पहला लेख लिखने के बाद कुछ और लिखने की तड़प और ज्यादा हो गई है।

किस्सा याद आता है,

 

सन २००१ की बात है, हमने अपने मकान में कुछ तोड़ फोड़ करवा कर रंगाई पुताई करवाई, अब हर रोज़ कुछ कबाड़ निकलता था तो वहाँ से गुज़रने वाले कबाड़ी को कह दिया - यार हर दूसरे दिन हमारे यहाँ से उठा लेना।

जनाब खुशी खुशी हर दूसरे दिन आ कर ले जाते थे जो भी निकलता था।

यह सिलसिला दो महीने तक चला। चलो भई हमारा काम ठीक निपट गया।

आखिरी दिन हमले उन का शुक्रिया किया और कहा अब महीने दो में पूछ लिया करना।

 

यह सब कई महीनो चला, कबाड़ बिकता रहा, महीने दर महीने

मगर हर बार जाते जाते पूछ बैठता - साहब लोहा नहीं है

कई महीने हो गए एक दिन तिलमिला के कहा, यार यह लोहा नहीं है की रट बंद करो या मेरा पीछा छोड़ो।

 

बाजू में खड़े खुराना जी बोले (शायद मुझे कभी गुस्से में नहीं देखा था उन्होंने) लगता है आपने इसे कई किलो लोहा बेचा था। मोटी कमाई हुई होगी उस से।

तब याद आया एक कमरा तोड़ने पर जो लोहा निकला था वो बेचा था,

खैर फिर नहीं पूछा उसने।

पहला लेख

12:33 PM Posted In 0 Comments »

सबसे पहले शुक्रिया उस दोस्त का जिसने मुझे व्लॉगर का पता दिया तींन घण्टे मेरे लिए निकाले ओर इस बेहद सुखद चीज़ से अवगत कराया।

उम्मीद है उन का यह प्रयास मेरे जीवन में कुछ फरक लाए।